आदिकाल से हमारे ऋषियों और पुरखों ने सनातन धर्म,संस्कृति,रहन सहन,खान पान तथा पहनावे पर गहन शोध करके नीति नियम निर्धारित किये।जो धीरे-धीरे हमारी सास्कृतिक पहचान बन चुकी थी । जैसे कि---पुरूष सिर पर पगड़ी, साफा ,दाढ़ी मूंछ,धोती-कुर्ता पहनते थे ।जो हर मौसम में शरीर की सुरक्षा करते हैं ।पहनावे जातिगत आधार पर भी अलग-अलग होते थे ।महिलाओं की पोशाक भी अलग-अलग होती थी ।जिससे अपरिचित भी समझ जाता था कि यह अमुक जाति से है।
वर्तमान समय में हमने अपने जीवन से प्राचीन पहनावे को छोड़ दिया गया है ।जिससे अपरिचित व्यक्ति पहचान नहीं सकता है ।कहीं कहीं परंपरागत पहनावा दिखाई देता है । जिसको आदर और पहचान मिलती है ।
आज राजपूतों की पहचान क्षत्राणीयो से है ।क्षत्राणीयो ने अपना पहनावा यथावत रखा हुआ है ।
आज दुसरे समाज अपने धर्म व संस्कृति के अनुसार रह रहे हैं ।और अपनी पहचान बनाये हुए हैं ।उन पर न तो कोई सरकारी दबाव है ।न ही कोई अन्य जातिगत दबाव है ।
काश!हम भी अपने पारंपरिक पहनावे को बरकरार रखे।जिससे राजपूती संस्कृति बनी रहे और सब आदर व सम्मान की नज़र से देखें ।जिस तरह सिक्ख अपने धर्म के अनुसार पारंपरिक पहनावे को बरकरार रखने के कारण पहचानेजाते हैं ।
हम भी अब ही सही,हमारी पारंपरिक पहनावे को धारण करना शुरू करें । जिससे राजपूती संस्कृति बनी रहे और सब आदर व सम्मान की नज़र से देखें ।
आशा है आप मेरे मनोभाव पर मनन करें।
--- बाघ सिंह राजावत ,ठिकाना सनवाड-फतहनगर ।
एक दम सही है ये बात
ReplyDelete