देश रक्षा में मारवाड़ के राठौड़ों का बलिदान

                                    स्मरणीय है देश रक्षा में मारवाड़ के राठौड़ों का बलिदान

मारवाड़ के इन राठौड़ राजपूत वीरों ने भी सैकड़ों वर्षों तक म्लेच्छ शक्ति से लगातार संघर्ष करते हुए हिन्दुस्तान की पावन पवित्र  देव भूमि की सुरक्षा में संस्तुत्य योगदान दिया था ।महाराष्ट्र और सम्पूर्ण दक्षिण भारत और बाद में कन्नौज पर जिन राष्ट्रकूट राजाओं का शासन था उन्हीं के वंशज इन राठौड राजपूतों ने मरुधरा की सुरक्षा से अपने को उस दिन तक बचाये रखा जिस दिन तक वे स्वयं इसकी सुरक्षा करने योग्य नहीं हो गये ।
मारवाड़ के प्रतिहार और चौहान शासकों के लगातार मुसलमानी आक्रमणों का सामना करते रहने से जो निर्बलता आई उनकी पूर्ति करने का काम राठौड़ों ने किया था ।

इस प्रकार कन्नौज के राष्ट्रकूट राजाओं (1043-1068 ई0)के वंशज राव सीहाजी लगभग 1250ई0 में मारवाड़ आये थे ।उस समय 1213 से 1252 ई0 तक मेवाड़ ने तुर्कों को भारी पराजय दी थी ।1248ई0 में बलवन के द्वारा चौहानों पर किये गए आक्रमण में उसे विफलता मिली थी ।1258ई0 में भी रणथम्भोर ,चित्तौड़ एवं बूंदी में उसे असफलता हाथ लगी।
अतःमारवाड़ हिन्दू शक्ति का एक सुरक्षित स्थान था ।ऐसी स्थिति में जब राव सीहा जी तीर्थाटन के लिए द्वारिका जाते हुए पुष्कर आये तो भीनमाल,पाली के ब्राह्मणों ने सीहाजी से मुल्तान के मुसलमानों द्वारा किये गए अत्याचारों की बात कही।राव सीहाजी ने अपनी सेना को अलग अलग मार्ग से भीनमाल भेजा।
मुल्तान पर उन दिनों बलबन के तुर्कों ओर मंगोलों के बीच लड़ाई चल रही थी ।अनुमान है कि इन्हीं तुर्कों ने भीनमाल पर अधिकार कर लिया होगा ।यद्धपि उन दिनों जालौर पर रावल उदयसिंह के पुत्र चचाक देव का राज्य था पर किन्हीं कारणों से वे भीनमाल को मुक्त न करा सके हों ऐसा अनुमान है।इसी कारण भीनमाल के ब्राह्मणों ने राव सीहा जी से निवेदन किया और उन्होंने बलवन के तुर्क सैनिकों से भीनमाल को मुक्त किया ।राव सीजाही के बाद उनके पुत्र राव आस्थान के समय में दिल्ली के फिरोजशाह ख़िलजी के सैनिकों ने 1296ई0 के लगभग पाली पर आक्रमण कर दिया ।इसी आक्रमण का सामना करते हुये140 वीरों के साथ पाली के तालाब पर राव आस्थनजी रणखेत रहे ।

   इनके छठे वंशज राव टीडा जी थे ।इस समय गुजरात में जफरखानं सुल्तान बन बैठा था ।ईडर के राव रणमल ने जफ़र खान से विकट संघर्ष लगातार किया था ।जफर खान से1398 -99ई0 में राव रण मल ने दूसरा बड़ा युद्ध किया जिसमे वे विजयी हुये ।इसके बाद भी गुजरात के सुल्तानों से संघर्ष चलता ही था उसी में महेवे के युद्ध में राव टिडआजी रण खेत रहे ।इनके प्रपौत्र रावल मल्लीनाथ ने 1373 से 1395ई0 तक मोहम्मद तुगलक से संघर्ष किया ।इनके भाई राव वीरम ने दिल्ली के फिरोज तुगलक के लिए जारही पेशकश धन नागौर के गांव चुनासर में लूट लिया ।इनके पुत्र राव चूण्डा जी ने मंडोर से ऐबक तुर्कों को निकाल कर अपना राज जमाया ।1399ई0 में राव चूण्डा जी ने मुसलमानों से नागौर जीत लिया।डीडवाना भी इन्होंने तुर्कों से खाली करा कर अपने राज में मिला लिया ।
राव चूण्डा के पुत्र राव रणमल ने मेवाड़ के राणा लाखा का अधिकार अजमेर पर करवाया था ।राणा कुम्भा के समय में उन्होंने मांडू के सुल्तान के विरुद्ध युद्ध किया था और नागौर के नबाब फिरोज द्वारा मण्डोर पर किये गये हमले को विफल किया था ।
राव रणमल के पुत्र राव जोधा ने भी पठानों से संघर्ष में विजय प्राप्त की थी और गया में हिंदुओं पर लगने वाले तीर्थ कर को समाप्त करवाया था ।राव जोधा ने 1445ई0 में अपने पुत्र राव बीदा, राव बीका और भाई रावत कौंधल के साथ हिसार के सुवेदार जमाल सारंग खानी को हरा कर द्रोणपुर , बीदासर पर राव बीदा जी राठौड़ का राज स्थापित किया ।
     1490ई0 में अजमेर के हाकिम मिलक युसूफ ने मेड़ता और जोधपुर पर सेना चढ़ा दीऔर पीपाड़ में गणगौर पूजने आई महिलाओं को पकड़ लिया ।इस पर जोधपुर के राव सातल ने युद्ध करके उन स्त्रियों को मुगलों से छुड़ाया और इस प्रयास में वे कोसणा के पास काम आये ।
   1527ई0 में मारवाड़ के राव गंगा ने बाबर के विरुद्ध महाराणा सांगा की सहायतार्थ 4 हजार सैनिक भेजे थे ।उसी लड़ाई में मेड़ता के राव वीरमदेव , रायमल और रतन सिंह राठौड़ भी गए थे ।
   इसके बाद जब राव मालदेव मारवाड़ के शासक बने तब शेरशाह ने मारवाड़ पर 1543ई0 में आक्रमण किया था।इस युद्ध में मारवाड़ के प्रसिद्ध वीर राठौड़ राजपूत काम आये थे और शेरशाह नेजोधपुर पर अधिकार कर लिया।पर 1546ई0 में मालदेव ने पुनः जोधपुर पर अधिकार कर लिया। 1548ई0में मालदेव के सरदार पृथ्वीराज राठौड़ ने अजमेर से मुस्लिम राज्य समाप्त कर दिया ।
  1561ई0 में अकबर के कमांडर सर्फुदीन ने मेड़ता पर चढाई की जिसका सामना करते हुये वीर देवीदास राठौड़ 400 सैनिको सहित रणखेत रहे ।
1562ई0 से 1580ई0 तक मारवाड़ के राव चंद्रसेन ने अकबर के विरुद्ध अपना संघर्ष चलाया लेकिन राव चंद्रसेन ने मरते दम तक अकबर से हार नही मानी और नही उसकी दासता स्वीकारी ।सिवाना दुर्ग की लड़ाई में काफी मुगलों को इन्होंने मारा था जिससे अकबर बहुत परेशांन हुआ ।ऐसे भारत के शीर्ष थे राव चंद्रसेन राठौड़ ।इनको मारवाड़ का "प्रताप "कहा जाता है ।ऐसा कहा जाता है कि ---"मान मरजाद राखी मेवाड़ै, त्रिजड़ै हिन्दूस्थान तणी "
बाद में राव चंद्रसेन के पुत्र रायमल और उनके पुत्र कल्याणदास ने अकबर जैसे शक्तिशाली शासक को भारत की स्वतंत्रता , भारतीय लोगों का मनोबल और आत्म गौरव का अदभुत परिचय कराया था ।कल्याणदास राठौड़ जैसे अभेधारियों ने ही भावी शताब्दियों में स्वतंत्रता आंदोलन का पूर्वाभास किया था ।कल्याणदास जैसे लोगों के दम पर ही भारत अपनी अस्मिता को बचा सका था ।
मारवाड़ के महाराजा गजसिंह प्रथम के बड़े पुत्र अमरसिंह अपनी आन और वचन के लिए जहां एक ओर अपने पिता के सामने नहीं झुके तो दूसरी ओर भरे दरबार में दिल्ली के बादशाह शाहजहां के साले सलावत खां का सर कलम करके और बादशाह शाहजहां पर प्राणघातक हमला कर यह सिद्ध कर दिया कि अमरसिंह को मौत मंजूर है अपमान नहीं।
  इस प्रकार लगभग 331 वर्षों तक मारवाड़ के राठौड़ वीरों के सतत संघर्ष के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में स्थायित्व और भारतीयता की रक्षा की जा सकी ।इसके बाद भी सन् 1679 -1718ई0 के मध्य वीर दुर्गादास राठौड़ भी मारवाड़ स्वतंत्रता संग्राम के जननायक थे ।यह वीर निस्वार्थ भाव एवं ह्रदय की उदारता का मूर्त रूप था ।हिन्दुधर्म की रक्षा उन्होंने तलवारों के बाल पर की है ।धर्म की रक्षा पौथी और लंबे दार्शनिक विवादों से नही होती बरन तलवारों से होती है जिसमें चारण कवियों ने ज्यादा योगदान दिया है  और कथावाचकों ने कम ।वीरदुर्गादास राठौड़ के त्याग व् वीरत्व को जन-प्रेरणा तथा राष्ट्रीयता के लिए प्रेरणादायी माना जाता है ।इस प्रकार वीर दुर्गादास राठौड़ भारतीय सनातन धर्म और सभ्यता का प्रेरणादायी प्रहरी और हमारे देश के स्वतंत्रता और स्वराज्य के प्रतीकों में से एक बने।जब तक यह धरती ,यह देश और "मारवाड़"शब्द इतिहास में जिंदा रहेगा तब तक लोग इन वीर योद्धा राठोड़ों के बलिदान को स्मरण रखे

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