लत्ता अस कलकत्ता हालय, लंदन बैठि लाट थर्राय॥
राजपूत ना रहने देगें, कल के सबको देंय भगाय।।
जब दल उमड़य उमरगढ़ का थरथर कापय मोहम्मदाबाद।
सुनसुन बातैं खुफिया जन की,भगैं फिरंगी ले मरजाद।।
यह लोकगीत उस अमर शहीद की याद दिलाता हे जिसने देश की आजादी की लड़ाई में अपने प्राण न्यौछावर कर दिये। उस वीर का नाम था राजा दिग्विजय सिंह जिसने लखनऊ का नाम इतिहास के पन्नों में अमर कर दिया। राजा दिग्विजय सिंह जिन्होंने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों से लोहा लिया था। उमरगढ़ के राजा दिग्विजय सिंह ने मडिय़ांव इलाके में छावनी सैनिकों का नेतृत्व करते हुए अंग्रेजों की ईंट से ईंट बजायी तथा उन्हें आगे बढऩे से रोक दिया मजबूरन अंग्रेजों को रेजीडेंसी में शरण लेनी पड़ी थी। राजधानी के महोना ताल्लुक स्थित उमरिया गांव(उमरगढ़) किले में राजा दिग्विजय सिंह रहा करते थे। गांव के लोग आज भी लोकगीतों के माध्यम से उन्हें याद करते हैं। राजा दिग्विजय सिंह पर चलाए गए मुकदमें बताते हैं कि किस प्रकार उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया और मडिय़ांव व चिनहट इलाके में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को हिन्दुस्तानी खून की गर्मी का अहसास करा दिया। वैसे तो लखनऊ का नाम इतिहास में कई मायनों में अमर है और हमेशा लोग लखनऊ के इतिहास को याद करते रहेंगे लेकिन आजादी की लड़ाई में भी लखनऊ की क्रांति में भी लखनऊ किसी से पीछे नहीं था। चाहे बेगम हजरत महल का बलिदान हो या फिर राजा दिग्विजय ङ्क्षसह अंग्रेजों को कइयों से मुकाबला करना पड़ा। इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि 22 मई 1857 का वह दिन था जब राजा दिग्विजय सिंह अपनी लगान की किश्त जमा करने कुर्सी तहसील गए हुए थे। जैसे ही उन्हें दिल्ली क्रांति की जानकारी मिली वह उमरगढ़ किले वापस लौट गए। उन्हें अहसास हो चुका था कि अब अंग्रेज अधिक समय तक देश में टिक नहीं पाएंगे। वह अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को एकजुट करने लगे। आखिरकार वह दिन आ ही गया जब 29 मई 1857 को मडिय़ांव छावनी में सैनिकों ने विद्रोह किया और राजा दिग्विजय सिंह को अंग्रेजों से टकराने का मौका मिल गया। उन्होंने सैनिकों का नेतृत्व करते हुए अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंक दिया। एक जुलाई 1857 में वह रेजीडेंसी की लड़ाई में शामिल हुए। उन्होंने अपनी दो तोपों और चार सौ सैनिकों के साथ लोहे के पुलिस के पास रेजीडेंसी की मोर्चाबंदी की। रेजीडेंसी के एक कमरे में अवध के चीफ कमिश्नर हेनरी लारेंस बैठे थे गोलाबारी हुई और राजा की तोप से निकला हुआ एक गोली लांरेस के कमरे में जा गिरा कुछ ही देर बाद गोला फट गया जिससे 4 जुलाई को चीफ कमिश्नर की मौत हो गयी। फ्रीडम स्ट्रगल इन यूपी खण्ड-2 में प्रकाशित डिप्टी कमिश्नर की रिपोर्ट में राजा ने आठ मई 1858 को महोना थाना फूंक दिया था। थाना फूंकने के बाद राजा ने तहसील कुर्सी पर कब्जा कर लिया था। 18 मार्च 1859 को गवर्नर जनरल के विदेश सचिव ने चीफ कमिश्नर अवध को एक पत्र भेजो जिसमें 50 क्रांतिकारियों के नाम थे जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की नाक में दम कर रखा था इस सूची में चौदहवें नम्बर पर नाम था राजा दिग्विजय सिंह का। इसके बाद अंग्रेजी सिपाही राजा को खोजने लगे। राजा की गिरफ्तारी भी एक भारतीय गद्दार के करतूत का नतीजा थी। जनवरी 1865 में भरीगहना निवासी शत्रोहन ने विश्वासघात करते हुए अंग्रेजों के हाथा राजा को गिरफ्तार करवा दिया। शत्रोहन कोई और नहीं राजा के घर में खाना पकाने वाला रसोइया था। राजा के ऊपर मुकदमें चले और 24 अक्टूबर 1865 को जूडिशियल कमिश्नर अवध ने काला पानी की सजा दे दी जहां बाद में उनकी मौत हो गयी।
दूसरा लेख पूर्ण इतिहास सहित 👉
1857 की क्राति में उमरगढ़ के राजा दिग्विजय सिंह ने क्राति का बिगुल बजाया। उन्होंने मड़ियाव छावनी में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। उनकी दहशत के चलते छावनी छोड़कर अंग्रेजों को रेजीडेंसी में शरण लेनी पड़ी थी। मड़ियाव क्राति के बाद चिनहट और रेजीडेंसी के युद्ध में गोरों की ईट से ईट बजा दी थी। उनके विरुद्ध अंग्रेजों द्वारा चलाए गए मुकदमों की कार्रवाई में इसका उल्लेख मिलता है। राजधानी के महोना ताल्लुक स्थित उमरिया गाव [उमरगढ़] किले के आसपास के गावों में राजा से संबंधित लोकगीत आज भी प्रचलित हैं। लत्ता अस कलकत्ता हालय, लंदन बैठि लाट थर्राय, जब दल उमड़य उमरगढ़ का थरथर कापय मोहम्मदाबाद। लखनऊ म्यूटिन बस्ता संख्या सात, क्षेत्रीय अभिलेखागार इलाहाबाद में सरकार बनाम राजा दिग्विजय सिंह के मुकदमे की कार्रवाई में उल्लेख मिलता है कि 22 मई 1857 को राजा अपनी लगान की किश्त जमा करने तहसील कुर्सी गए थे। जैसे ही उन्हें दिल्ली क्राति की सूचना मिली वह उमरगढ़ किले वापस लौट आए। 29 मई को मड़ियाव छावनी के सैनिकों के विद्रोह की लड़ाई में सैनिकों के साथ मिलकर युद्ध किया। एक जुलाई 1857 को रेजीडेंसी की लड़ाई में शामिल हुए। उन्होंने अपनी दो तोपों और चार सौ सैनिकों के साथ लोहे वाले पुल के पास रेजीडेंसी की मोर्चाबंदी की थी। दो जुलाई की सुबह रेजीडेंसी के एक कमरे में अवध के चीफ कमिश्नर हेनरी लारेंस बैठे थे, गोलाबारी चल रही थी। राजा की तोप का गोला कमरे में गिरा। चार जुलाई 1857 को चीफ कमिश्नर की मौत हो गई। मेजर जान शोर बुक बैड भी 21 जुलाई को क्रातिकारियों की गोली से मारे गए। फ्रीडम स्ट्रगल इन यूपी खंड-दो, सूचना विभाग उत्तर प्रदेश में प्रकाशित डिप्टी कमिश्नर लखनऊ की साप्ताहिक रिपोर्ट के मुताबिक राजा ने आठ मई 1858 को महोना का थाना फूंक दिया था। उसके बाद कुर्सी तहसील पर कब्जा कर लिया। 18 मार्च 1859 को गवर्नर जनरल के विदेश सचिव द्वारा चीफ कमिश्नर अवध को जो पत्र भेजा गया उसमें 50 क्रातिकारियों के नाम थे।
इसमें चौदहवें क्रातिकारी का नाम राजा दिग्विजय सिंह था। जनवरी 1865 में भरीगहना निवासी शत्रोहन ने विश्वासघात कर राजा को अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार करवा दिया। शत्रोहन राजा के भंडारे का रसोइया था। राजा पर चलाए गए मुकदमों में उन्हें 24 अक्टूबर 1865 को जूडिशियल कमिश्नर अवध ने काला पानी की सजा सुनाई। राजा की सजा के दौरान ही सेलुलर जेल में मौत हो गई।
जय क्षात्र धर्म🙏🚩
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