जय_क्षात्र_धर्म
स्वामी_भक्त_पन्नाधाय_का_इतिहास
मेवाड़ के इतिहास में जिस गौरव के साथ प्रात: स्मरणीय महाराणा प्रताप को याद किया जाता है, उसी गौरव के साथ पन्नाधाय का नाम भी लिया जाता है, जिसने स्वामीभक्ति को सर्वोपरि मानते हुए अपने पुत्र चन्दन का बलिदान दे दिया था। इतिहास में पन्नाधाय का नाम स्वामिभक्ति के शिरमोरों में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है।

#पन्नाधाय_राणा_साँगा_के_पुत्र_राणा_उदयसिंह_की_धाय_माँ थीं। पन्ना धाय किसी राजपरिवार की सदस्य नहीं थीं। अपना सर्वस्व स्वामी को अर्पण करने वाली वीरांगना। पन्ना धाय का #जन्म_कमेरी_गावँ में हुआ था। राणा साँगा के पुत्र उदयसिंह को माँ के स्थान पर दूध पिलाने के कारण पन्ना ‘धाय माँ’ कहलाई थी। पन्ना का पुत्र चन्दन और राजकुमार उदयसिंह साथ-साथ बड़े हुए थे। उदयसिंह को पन्ना ने अपने पुत्र के समान पाला था। उस समय चितोड़ की गद्दी पर महाराणा विक्रमादित्य बैठे थे। यह अयोग्य सिद्ध हुआ और गुजरात के बहादुर शाह ने दो बार आक्रमण कर मेवाड को नुकसान पहुंचाया इस दौरान 1300 महारानियों के साथ #कर्मावती_सती हो गई। विक्रमादित्य की हत्या दासीपुत्र बनवीर ने की तथा वह उदयसिंह की भी हत्या करना चाहता था। पन्नाधाय ने उदयसिंह की माँ रानी कर्मावती के सामूहिक आत्म बलिदान द्वारा स्वर्गारोहण पर बालक की परवरिश करने का दायित्व संभाला था। पन्ना ने पूरी लगन से बालक की परवरिश और सुरक्षा की। पन्ना चित्तौड़ के कुम्भा महल में रहती थी।
दासी का पुत्र बनवीर चित्तोड़ का स्वामी बनना चाहता था। उसने महाराणा के वंशजों को एक-एक कर मार डाला। बनवीर एक रात महाराजा विक्रमादित्य की हत्या करके उदयसिंह को मारने के लिए उसके महल की ओर चल पड़ा। एक विश्वस्त सेवक द्वारा पन्ना धाय को इसकी पूर्व सूचना मिल गई। पन्ना राजवंश और अपने कर्तव्यों के प्रति सजग थी व उदयसिंह को बचाना चाहती थी। उसने उदयसिंह को एक बांस की टोकरी में सुलाकर उसे झूठी पत्तलों से ढककर एक विश्वास पात्र सेवक के साथ महल से बाहर भेज दिया। बनवीर को धोखा देने के उद्देश्य से अपने पुत्र को उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया। बनवीर रक्तरंजित तलवार लिए उदयसिंह के कक्ष में आया और उसके बारे में पूछा। पन्ना ने उदयसिंह के पलंग की ओर संकेत किया जिस पर उसका पुत्र सोया था। बनवीर ने पन्ना के पुत्र को उदयसिंह समझकर मार डाला। पन्ना अपनी आँखों के सामने अपने पुत्र के वध को अविचलित रूप से देखती रही। बनवीर को पता न लगे इसलिए वह आंसू भी नहीं बहा पाई। बनवीर के जाने के बाद अपने मृत पुत्र की लाश को चूमकर राजकुमार को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए निकल पड़ी। स्वामिभक्त वीरांगना पन्ना धन्य हैं! जिसने अपने कर्तव्य-पूर्ति में अपनी आँखों के तारे पुत्र का बलिदान देकर राजवंश को बचाया।
पुत्र की मृत्यु के बाद पन्नाधाय उदयसिंह को लेकर बहुत दिनों तक शरण के लिए भटकती रही पर दुष्ट बनबीर के खतरे के डर से कई राजकुल जिन्हें पन्ना को आश्रय देना चाहिए था, उन्होंने पन्ना को आश्रय नहीं दिया। पन्ना जगह-जगह राजद्रोहियों से बचती, कतराती तथा स्वामिभक्त प्रतीत होने वाले प्रजाजनों के सामने अपने को ज़ाहिर करती भटकती रही। फिर बाद में वह उदयसिंह को लेकर कुंभलगढ़ पहुची। वहां का किलेदार आशा देपुरा ने पन्ना से सारा हाल सुनकर उदयसिंह को अपने पास सुरक्षित रखा। उदयसिंह क़िलेदार का भांजा बनकर बड़ा हुआ। उदयसिंह के जीवित होने की बात सब जगह फेल गयी। उदयसिंह 15 वर्ष का होने के कारण कई सरदार तथा उसकी ननिहाल (बूंदी) वाले उसे अच्छी तरह पहचानते थे। सरदारों ने उदयसिंह को मेवाड़ का स्वामी माना तथा सेना इखट्ठी कर बनवीर को मावली गांव के पास हराया। इस प्रकार वि.स्. 1597(ई.स्. 1540) में उदयसिंह को राजगद्दी पर बिठाया||
#कुँवर_ भंवर सिंह राजावत
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