कच्छावाहा राजवंश
राजपूत-कच्छवाहा-सूर्यवंश-कुम्भावत शाखा।
आमेर के राजा चन्द्रसेन बनबीरोत के पुत्र कुम्भा अपने समय के ख्याति प्राप्त वीर योद्धा एवं पराक्रमी थे।
हिन्दाल पठान के द्रारा रायमल जी अमरसर पर वि.स.1555 मै कुम्भा जी ने अत्यत विरता दिखाते हुऐ। विरगति को प्राप्त हुऐ।
इन्हि के वंशज कुम्भावत कहे लाऐ। कुम्भा जी के पुत्र उदयकर्ण को महार की जागीरी मिली। इनके वंशज लुर्णकर्ण जी भी तजस्वी व प्रतापी थें।
उनको रावत की विषश पदवी दी गई। इस कारण लुर्णकर्ण जी के रावत भी कहलाऐ। लुर्णकर्ण जी के चार पुत्र रामजी कर्मसिह जी(3व4के नाम ज्ञात नहीं) बडे पोत्र राम जी महार रहे छोटे कर्मसिह जी पाड़ली ठीकाना मिला। बाद मै छुट गया।
ओर उनके वंशजो को दातंली ठिकाना मिला।(मेहन्दीपुर के बालाजी के नजदीक ) दौसा
तीसरे पोत्र के वंशज झुन्झुनू जिला मे बाजवा,हरिडिया,लामा ढाडी, टिलोडी मे आज भी निवास.करते है। ये रावत के नाम से जाने जाते है। चोथ पोत्र को जयपुर के बिसाला ठिकाना मिला।
महारसे निकल अन्य ठिकाने भालेरी नया शहर व मलवात मे बिकानेर रियासत में है।
रामजी के वंशजो के अन्य ठिकाने किरतपुर,मिलखपुर व छोटी महार थे। महार के दल सिहं जी उम्मेद सिहं जी मावडा-मंण्ढोली
(वि.1824)के युध्द मे वीरगति को प्राप्त हुऐ।
महार के दो शिलालेख इस बात के साक्षी है।( यह दोनो शिलालेख तथा इतिहास की जानकारी खुद देवी सिहं जी महार द्धारा प्राप्त हुई है। )कुम्भाजी के छोटे पुत्र शेखोजी के कर्मचन्द्र हुए।
यह राजा मानसिहं के साथ काबूल की चडाई मे साथ थे। मानसिहं जी के साथ इन्होन कटक नदी मे घोडा डाला ,ओर विरता दिखाई। मानसिहं जी ने इनको धमाडा व कोठडी की जागिरी दी।(बगवाडा ठिकाने री ख्यात )
इनके पोत्र राघोजी व विठलदास हुऐ। विठलदास का पुन्याणा ठिकाना था। व राघो दास के पोत्र का बगवाडा ठिकाना था।
जय जमुवायमाताजी।
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