मैंने उसकोजब-जब देखा,लोहा देखा।लोहे जैसा तपते देखा, गलते देखा, ढलते देखा मैंने उसको गोली जैसा चलते देखा

                       
मैंने उसकोजब-जब देखा,लोहा देखा।लोहे जैसा
तपते देखा, गलते देखा, ढलते देखा
मैंने उसको
गोली जैसा चलते देखा।
#यह_ही_है_क्षत्राणी

         यथार्थ में देखा जाए तो क्षत्राणीयों का इतिहास व उनके क्रियाकलाप उतने प्रकाश में नहीं आए जितने क्षत्रियों के। क्षत्राणीयों के इतिहास पर विहंगम दृष्टि डालने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि क्षत्रिय का महान त्याग व तपस्या का इतिहास वास्तव में क्षत्राणीयों की देन है।
      राजा हिमवान की पुत्री #गंगा ने अपनी तपस्या के बल पर भगवान् श्रीनारायण के चरणों में स्थान पाया और भागीरथ की तपस्या से वे इस सृष्टि का कल्याण करने के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुई। उन्हीं की छोटी बहन #पार्वती ने अपनी तपस्या के बल पर भगवान् सदाशिव को पति के रूप में प्राप्त किया व दुष्टों का दलन करने वाले स्वामी कार्तिकेय और देवताओं में अग्रपूजा के अधिकारी गणेश जैसे पुत्रों की माता बनी। महाराजा गाधि की पुत्री व विश्वामित्र जी की बड़ी बहन #सरस्वती अपनी तपस्या के बल पर ही जलरूप में प्रवाहित होकर पवित्र सरस्वती नदी का रूप धारण कर सकीं। इसी प्रकार #नर्मदा नदी भी पूर्वकाल में हुए राजा दुर्योधन (धृतराष्ट्र के पुत्र नहीं ) की ही पत्नी है।
    राजा द्रुपद की सभा में "कुंती के मुख से जो शब्द निकले है वही धर्म है"  के निर्णय को श्रीकृष्ण व समस्त राजाओं ने स्वीकार किया। ऐसी धर्मज्ञ कुन्ती "माता ही निर्माता हैं "  इस सिद्धांत की प्रतिपादक राजा कुवलयाशय की रानी #मदालसा, केवल एक वर्ष तक पति की सेवा कर सत्य धर्म के बल पर सत्यवान को धर्मराज से पुनः जीवन दिलाने वाली #सावित्री, विपत्ति में पड़े हुए पति को अपने अद्भुत बुद्धि कौशल से खोजकर लाने वाली राजा नल की पत्नी #दमयंती,  भयानक विपत्ति में भी राजा हरिश्चंद्र का साथ नहीं छोड़ने वाली #तारामती, श्री विहीन हुए राजा संजय को अपने अधिकार के लिए प्रेरित करने वाली माता #विदुला, पत्नी की महिमा को उजागर करने वाली राजा दुष्यंत की पत्नी #शकुंतला, पति को मोहपाश के बंधन से मुक्त करने के लिए अपना सिर काटकर देने वाली रानी #हाडी, ईश्वर को ही अपने आपको समर्पित कर देने वाली #मीरां व #रूपादे तथा वर्तमान में पति के वियोग में वर्षों से बिना अन्न जल ग्रहण किए तपस्या में लीन बाला सती #रूपकंवरजी भी क्षत्राणी ही तो थी।।
    क्षत्राणीयों का कर्तव्य यद्यपि संसार में बुराई के विरूद्ध संघर्ष करने वाले व अच्छाई का रक्षण करने वाले क्षत्रियों का निर्माण करना ही है तथापि यदि समय ने उनको शस्त्र उठाने के लिए मजबूर किया तो भी वे पीछे नहीं हटी। ओंरिट (चुरू) के शासक मोहिल माणकराव की पुत्री #कोडमदे (करमदेवी) पूंगल के राजकुमार साधू की मृत्यु के बाद रणक्षेत्र में ही सती हुई 

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