कार्य_व_मार्गदर्शन_की_अवास्तविक_मांग
आज लोग कहते है – ” हम काम करना चाहते हैं, लेकिन हमको कोई काम देने वाला नहीं है । हम सामजिक व आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में मार्गदर्शन के लिए तड़प रहे है लेकिन हमको कोई मार्गदर्शन देने वाला नहीं है। ” यह दोनों की मांगे पूरी तरह से असत्य व अपने आप को धोके में डालने वाली है।
जो कार्य करना चाहता है , उसको काम करने से संसार की कोई शक्ति नहीं रोक सकती और जो मार्ग को खोजना चाहता है , उसे मार्ग को प्राप्त करने से कोई भी शक्ति नहीं रोक सकती। काम की मांग करना अपनी निष्क्रिय पे पर्दा डाल कर अपने आप को भ्रमित करना है ।
लोग कहते है कि हम श्री क्षत्रिय युवक संघ में काम करना चाहते है । हम काम तब करें , जब हमको कोई अधिकृत व्यक्ति काम करने के लिए कहे । अगर हम वास्तविकता में जाएँ तो यह कथन कतई सही नहीं है , क्योंकि इस कथन के साथ भी दुराग्रह जुड़े हुए है । क्षत्रिय युवक संघ कोनसा है ? इसकी परिभाषा भी हम करें। उस प्रकार से हो तो हमें स्वीकार है अन्यथा नहीं । काम क्या हो व कैसा हो ? यह भी हम कहें जैसे तो तो ठीक है है अन्यथा गलत। फिर काम व मार्गदर्शन कि मांग कहाँ रह जाती है ? यह सब निष्क्रियता को छिपाने के बहाने है ।
अगर कोई व्यक्ति समाज मै काम करना चाहता है तो उसे कोन रोक रहा है ? समाज मै हजारों तरह कि बुराइयाँ है , उनके निवारण केलिए उतने ही कार्यक्षेत्र है। हम कार्य क्षेत्र में उतर सकते है , लोगों से सहयोग मांग सकते है। सहयोग मिलेगा व कार्य होगा , किन्तु यह सब कुछ हम करना नहीं चाहते है। हम तो पड़े पड़े नेता बनना चाहते है , पद चाहते है व यश चाहते है। यह सब उपार्जन कि वस्तुएं है , जिनको हम बिना श्रम किये प्राप्त करना चाहते है , जिसकी कोई संभावना नहीं है ।
आज हमारी निष्क्रियता कि अवस्था यहाँ तक दयनीय हो गई है कि कार्य करना व शाखायें चलाने कि बात तो दूर रही , महीनों व वर्षों तक आपस में मिलते नहीं , फिर भी दुसरे लोगों के बारे मै बिना जाने , पड़े पड़े निंदा व आलोचना करते रहते है।
सक्रियता ही जीवन है व निष्क्रियता मृत्यु। आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रविष्टि होने कि पहली सीढ़ी है , सुकर्म में प्रवृत होना। बिना सुकर्म में लगे अपने आप को जानने कि प्रेरणा जागृत नहीं हो सकती। अतः जिन लोगों में अपने आपकी खोज करने की उत्कष्ट अभिलाषा नहीं है , उन्हें आध्यात्मवाद के मार्ग पर अग्रसर होने की चेष्टा करने के बजाय सदा सुकर्मों में लगे रहने की चेष्टा करनी चाहिए , ताकि अपने आप की खोज के लिए वास्तविक लगन व वास्तविक पीड़ा स्वतः ही पैदा हो सके।
जो लोग आध्यात्मिक क्षेत्र में मार्गदर्शन की मांग कर रहे है , उनकी भी मांग उतनी ही अवास्तविक है जीतनी सामजिक क्षेत्र में कार्य करने वालों की मांग अवास्तविक है। क्षत्रियों की आराधना व साधना पद्दति ‘ प्राणगत ‘व ‘ हृदयगत ‘ साधना है। हमारे ह्रदय में प्रतिष्ठित ‘ प्राण ‘ हमारा मार्गदर्शन करने के लिए सतत प्रयत्नशील है , फिर हम किससे मार्गदर्शन की मांग कर रहे है ? आवश्यकता केवल इतनी ही है कि हम सहज भाव से व सहज गति से अपनी सात्विक साधना को कायम रखते हुए हमारे मार्गदर्शक ‘ प्राण ‘ कि खोज के कार्य को गति दें। अपने आपको जानने के लिए व्यथा व पीड़ा कि ज्योति को जागृत करें व उसे सतत ज्वलंत रखने कि चेष्टा करें
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