कछवाहों_मे_मांसाहार_और_मदिरापान_निषेध_है.
#आइए_जानते_है_किस_तरह_से_कछवाहों_को_ #मांसाहार_और_मदिरापान_की_वजह_से_अपना_पैतृक_राज्य_ग्वालियर_त्यागना_पडा
क्षत्रियों में अपनी कुलदेवी के लिए बलि देने व शराब चढाने की परम्परा कब शुरू हुई यह शोध का विषय है| लेकिन क्षत्रिय चिंतकों व विद्वानों के अनुसार क्षत्रियों में पशु बलि व मदिरा चढाने की पूर्व में कोई परम्परा नहीं थी
और क्षत्रिय मांसाहार व मदिरा से दूर रहते थे, लेकिन क्षत्रियों के शत्रुओं ने उन्हें पथ भ्रष्ट करने के लिए उन्हें इन व्यसनों की ओर धकेला| इस कार्य में क्षत्रियों के ऐसे शत्रुओं ने योगदान दिया, जिन्हें क्षत्रिय अपना शत्रु नहीं, शुभचिंतक मानते थे| लेकिन ऐसे लोग मन ही मन क्षत्रियों से जलते थे और क्षत्रियों का सर्वांगीण पतन करने के लिए पथ भ्रष्ट करना चाहते थे| ऐसे ही इन कथित बुद्धिजीवी शत्रुओं ने क्षत्रियों को पथभ्रष्ट करने के लिए उनसे अपने देवी-देवताओं के लिए पशु-बलि व मदिरा चढाने का कृत्य शुरू करवाया और यह परम्परा शुरू होने के बाद क्षत्रिय मांसाहार व शराब से व्यसनों में पड़ कर पतन के गर्त की ओर स्वत: उन्मुक्त हो गए|
"कछवाहों की वंशावली" पुस्तक की भूमिका में श्री देवीसिंह जी महार ने बड़वों की पुरानी पोथियों में लिखित वास्तविक तथ्यों का उल्लेख करते हुए कछवाहों द्वारा ग्वालियर का शासन खोने का कारण बनी अपनी कुलदेवी के बलि व शराब चढाने व इस कृत्य से कुलदेवी द्वारा नाराज होने की घटना लिखी है जो पाठकों के लिए हुबहू यहाँ प्रस्तुत है----
इतिहासकारों ने ग्वालियर के शासक ईसदेवजी द्वारा राज्य को स्थिर करने के उद्देश्य से अपना राज्य भानजे को व धन ब्राह्मणों को देने का उल्लेख किया है जो पूर्णत: भ्रामक है। बड़वों की पुरानी पोथियों में वास्तविक तथ्यों का उल्लेख मिलता है लेकिन वहाँ तक पहुँचने का इतिहासकार प्रयत्न ही नहीं करते। इन पोथियों के अनुसार ग्वालियर का शासक ईसदेवजी तान्त्रिक ब्राह्मणों के चकर में फंस गया व उसने ग्वालियर के किले में स्थित अपनी कुलदेवी अम्बामाता के बकरों की बलि देने व शराब चढ़ाने का कार्यक्रम आरम्भ कर दिया। अम्बामाता ने स्वप्न में ही ईसदेव को कहा कि इस मदिरा मांस को बन्द कर वरना मैं तेरा राज्य नष्ट कर दूँगी। इस आदेश की ईसदेव ने कोई परवाह नहीं की। एक रोज ईसदेव अपने बहनोई के साथ शिकार के लिए गए जहाँ ईसदेव द्वारा चलाया गया तीर शेर के नहीं लगकर उनके बहनोई के सीने में लगा और उनकी वहीं मृत्यु हो गई। रात को कुलदेवी अम्बामाता ने स्वप्न में फिर कहा- 'कि देख लिया मेरा प्रकोप, तेरा राज्य तो नष्ट हो चुका है, अब भी सम्भल जा वरना तेरे वंश का नाश कर दूँगी।”
उपयुक्त चेतावनी से भयभीत होकर ईसदेव ने राज्य त्याग का निश्चय किया। वे स्वयं करौली व मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित नादरबाड़ी के समीप जंगलों में रहकर प्रायश्चित के लिए तपस्या करने लगे व कालान्तर में वहीं पर उनका देहान्त हुआ। उनके दोनों लड़के सोढ़देव व पृथ्वीसिंह सेना सहित प्रायश्चित के लिए अयोध्या के लिए रवाना हुए। मार्ग में अमेठी के भर राजा (जो निम्न जाति का था) से उनका युद्ध हुआ और उन्होंने अमेठी में अपना राज्य स्थापित कर दिया। तदुपरान्त सोढ़देव के पुत्र दुलहराय सेना सहित अपने ससुर के निमन्त्रण पर दौसा पहुँचे व आधा दौसा जिस पर बड़गूजरों का अधिकार था, विजय कर लिया। आधा दौसा जिस पर उसके ससुर के अधिकार में था, वह उसके ससुर सिलारसी चौहाण ने दुलहरायजी को दे दिया। तदुपरान्त दुलहरायजी ने अपने पिता सोढ़देवजी को भी दौसा बुला लिया।
उल्लेखनीय तथ्य यह है कि सोढ़देवजी ने अमेठी का राज्य अपने पुत्र पृथ्वीसिंह को सौंप दिया। लेकिन अमेठी राज्य का राजतिलक न तो सोढ़देवजी के हुआ और न ही पृथ्वीसिंह के हुआ। इसी प्रकार दौसा का राजतिलक भी सोढ़देवजी के नहीं हुआ। दौसा का राजतिलक सोढ़देवजी के पुत्र दुलहरायजी के व अमेठी का राजतिलक पृथ्वीसिंह के पुत्र इन्द्रमणि के हुआ। इससे यह स्पष्ट होता है कि सोढ़देवजी व पृथ्वीसिंहजी दोनों भाई भी अपने पिता ईसदेवजी के साथ मदिरा-मांस के सेवन में शामिल रहे होंगे, जिसके कारण कुलदेवी के प्रकोप से बचने के लिए उन्होंने राज्य ग्रहण नहीं किया।
कालान्तर में मीणों पर विजय दिलाने पर दुल्हरायजी ने जमुवाय माता को अपनी कुलदेवी बनाया, जिसका उल्लेख इस वंशावली (कछवाहों की वंशावली) में है। यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि अपनी पुरानी कुलदेवी अम्बामाता को पुन: प्रसन्न करने का कार्य जयपुर के राजा माधोसिंहजी प्रथम ने किया अथवा प्रतापसिंहजी ने। जयपुर के पूर्व में स्थित पहाड़ी पर उन्होंने अम्बामाता का मन्दिर बनवाया व दादी माँ के रूप उसे पूजित करना प्रारम्भ किया।
बीकानेर स्थित ‘स्टेट आकाइज' के रेकार्ड के अनुसार अम्बा माता के मन्दिर के पास आमागढ़ का निर्माण जयपुर के राजा प्रतापसिंहजी ने करवाया था, जहाँ पर सैनिक टुकडी रखी गई क्योंकि उस समय जयपुर व आमेर के पहाड़ों में शेर व बघेरे स्वतंत्र रूप से विचरण करते थे अत: मन्दिर के पुजारी की सुरक्षा के दृष्टिकोण से ही आमागढ़ का निर्माण कर वहाँ पर सैनिक टुकडी रखी गई। प्रतापसिंहजी ने मन्दिर के पुजारी को ग्राम पालड़ी मीणा में जागीर (माफी) भी प्रदान की थी। लेकिन बाद के राजा इस परम्परा का निर्वाह नहीं कर पाए इसलिए मन्दिर की सेवा पूजा तो होती रही लेकिन आम कछावों में इसकी पूजा की परम्परा नहीं बन पाई। रियासत के विलीनिकरण के बाद पुजारियों ने भी सेवा पूजा का कार्य बन्द कर दिया |
जय राजा रामचन्द्रजी।🚩
जय जमुवाय माता🚩
जय शीला माता 🚩
जय कछवाहा राजवंश🚩
Kya kachhavaha logo ne akbar se vaivahik sambandh banaye?
ReplyDeleteJi ha kachhawah vans ne sabse pehle vivahik samband banaye
Deleteइस घटना का दूरगामी प्रभाव पडा था, कछवाह राजवंशो के रिश्ते पर भी कुछ प्रभाव पडा था ।
Delete1-बुजुर्गो के अनुसार कई लोगो ने इसका विरोध किया, जो बाद मे पृथिक जाती हो गये।
2-sadarn लोगो से भी मुल्ले लड्की मंगने लगे थे,अनेको को कछवाह बोलने शर्मिंस्गी उठनी पडी थी।
3- पूरे भारत मे इस का असर हूआ था
Aapne galat kha ki sode dev ka putr parti Singh vha to dono bhai te murk
ReplyDeleteKachawa or kushwaha aaps me shaadi ho skti h kya ye bhai bandhu to ni Hote na
ReplyDeleteShadi nhi ho sakti
DeleteKachawah rajwansh ke aaradhya devta kon the
DeleteBhi kachawa wansh ka rajtilak kon krta he
ReplyDeletePlease call me 9672368710
Bhai shab jo bhi kachhawa vansh ke hai vo aage bde or kuldevi ko mane or sbhi ek hokar rhe.me Gokul Singh kachhawa mp indore se hu
ReplyDeleteहमारी कुलदेवी को मानने से पहले मास मदिरा सेवन का त्याग करें
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DeleteBhai sab kachhawaha ke gad thikana solsinda jagir jila indore mp se hu or kachhawa ne koi apni behan ki sadi mughlo se nahi ki thi aj ke jamane me koi apni behan ki sadi koi muslim se nahi kr sakta to vo to maharaja the unka to hm se jyada swabhiman tha ye ithaskaro ne sb galat padake hume brham me rakha h or kuch murkh ise satya man lete h
ReplyDeletekya kachhwaha khatriya ka aprabhans kushwaha hai to samaj ko malin kyo nahi hai aur sabhi samaj ke log unse jalte kyo hai
ReplyDeleteham Vijay Singh Kushwaha SATNA (MP) SE HAI
ReplyDeleteNhi Kacchwaho ne apni beti ki shadi muglo se nhi ki thi..
ReplyDeleteVo Ladki(Jodha bai) jiski shadi akbar k saath hui thi vo Raja bharmal ke shadi me dahej me aayi hui ek dasi ki ladki thi... Jo ki Rajputana me पली बढ़ी थी तभी उसको राजपूत वंश की रीति- रिवाजों के बारे में भली- भाँति सब कुछ पता था। और आमेर के राजा भारमल जी जानते थे कि मुगलों की सेना जनसंख्या में उनसे बड़ी है, तभी उन्होंने उस दासी की पुत्री का विवाह अकबर से कर दिया था..। वो उनकी सगी पुत्री नहीं थी.." क्षत्रिय मर जाएँगे लेकिन कभी किसी के सामने झुकेंगे नही.."😊😊
ठीक h सा आप कहते h ki jodha bai दासी पुत्री थी पर जिसकी शादी जहगीर से हुई bo to Rajput thi hamre purvajo n kabhi किसी के सामने सिर नही झुकाया पर भारमल n putra moh m pad kar hamre समाज को सिर झुकाने पर मजबूर कर दिया था जो राजपूत पुत्री राजा भागवान दास की थी bo to koi dasi nahi thi
Deleteकृप्या मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा के पौत्र और राम सिंह बाबा के ज्येष्ठ पुत्र सरदार किशन सिंह बहादुर जी के बारे में भी पर्याप्त जानकारी उपलब्ध करायें। दादर में दारा शूकोह की गिरफ्तारी के बाद औरंगजेब ने दारा शूकोह का साथ देने के कारण हमारे पूर्वज़ सरदार किशन सिंह बहादुर जी को भी सजा-ए-मौत देने की घोषणा कर चुका था। इससे बचे रह कर औरंगजेब के विरुध्द जीवन पर्यंत संघर्ष करते रहने के कारण आमेर रियासत के उत्तराधिकारी रहे हमारे पूर्वज़ सरदार किशन सिंह बहादुर जी पटना के तत्कालीन दीवान शाह अर्जन की मदद से पटना में ही बस गए थे। 1659-60 इस्वी से ही हमारे पूर्वज़ बिहार की राजधानी पटना में बस गए थे। तब से आज तक घोर गरीबी से हमारे परिजन जूझ रहे हैं।
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ReplyDeleteकच्छावाह गौत्र हमारे सैनिक क्षत्रिय माली समाज मे भी आता है ।
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