राजपूत इतिहास कछवाहा वंश 3
जय कुलदेवी जमुवाय भवानी।
धर्मरक्षक राजा मानसिहं आमेर जिनकी चर्चा दूर दूर तक थी।
बल बुध्दि चातुर्य धर्मरक्षक राजामानसिहं, उनके विजय अभियान अफगान, फारस ,मंगोल ,इत्यादि यवन राज्य व श्रीलंका तक थे।
उनका भय यवनों में इतना था । इतना कहर भरपाया की आज भी उनके नाम का भय जारी है।
वो कोई ओर नही राजा मानसिहं आमेर थे। पर कुछ धर्म विरोधीयों ने इनका वर्तमान में इनका इतिहास इतना धूमिल कर दिया है। जिसकी कोई सिमा नही आज उनके सामने सत्य प्रमाणिक आधार पर साबित करतें है। पर इन झुठों से इस देश से धर्म रक्षकों का सत्य कोई नही छिन सकता हैं। वो सत्य थे।सत्य ही रहेगें।।
भारमल जी की शादी -पृथ्वीराज सिहं (प्रिथीराज) के पुत्र भारमल जी ने बहुत सी शादीयां की थी। राजपुत वंश की दो ही शादीयां की है। अतं पत्नी का पूर्णतया दर्जा दो ही रानियो को प्राप्त है। बाकि अन्य जातियों की थी ।जो केवल रखलें या दासियां थी। जिन्हे के कारण उन्हे दो
रानियों के पांच पुत्रों के अलावा दासियों के छः पुत्र और एक पुत्री थी । उन्हे दासी पुत्र पुत्री कहगें नाकि राजकुमार या राजकुमारी है।वह केवल दासी संतान का ही दर्जा प्राप्त है।
पहली शादीं - राजपूतों में पहली शादी बदन कँवर से हुई।
दूसरी शादी- चम्पावत कँवर से हुई जो सोलंकी राजा राव गंगा सिहं की बेटी थी।
भारमल जी की मृत्यु 27जनवरी 1574को हुई।
व भारमल जी का शासन 1जून 1548 से 27जनवरी 1574 तक था।
भारमल जी के ग्यारह पुत्र और एक पुत्री थी। जिनमें पांच राजपूत रानियो की संतान थी। बाकि अन्य दासी पुत्र पुत्री थें जो न तो राजकुवर थे नाहि राजकुमारी वह केवल अवंध संतान थी।
(नोट. भारमल जी की केवल पांच ही संतान है।जो केवल राजपूत रानियो से उत्पन्न थी,)
बाकि सात पुत्र पुत्री दासियां या रखैल से उत्पन्न थी जिनहै पूर्णतया दर्जा नही था।
हालाकि उनका लालन पालन राजपूतों मैं हुआ लकिन वह अन्य जाति की महीलाओं से उत्पन्न थे। वह पूर्णतया राजपूत नहीं थें।
01भगवानदास- इनका जन्म रानी बदनकँवर से हुआ।
इन्हे लवाण की जागीर मिली। बाकें
राजा की उपाधी धारण की।
02 भगवन्त दास- इनका भी जन्म रानी बदनकँवर से
हुआ ।
03 - जगन्नाथसिहं ( इनका जन्म सोलंकी रानी से हुआ।
जिनकी मृत्यु 1585में हुई।)
04- सार्दुलजी।
05- सलेंदीजी ।
उपरोक्त पाचं पुत्रों के अलावा भारमल जी के अन्य सात पुत्र व पुत्रीं थी। जो केवल रखेलें दासी पुत्र व एक पुत्री थी , अन्य जाति से उत्पन्न संतान थी।
06- सुन्दरदास (दासी पुत्र)
07- पृथ्वीदिप (दासी पुत्र:)
08- रूपसिहं उर्फ रूपचन्द्र (दासी पुत्र)
09- महेशदास (दासी पुत्र:)
10- भोपत (दासी संतान)
11-परशुराम (दासी पुत्र)
हरकुँ कुवर ,हीरा बाई (दासी पुत्री)
दासी पुत्री हरकु कुँवर हीरा बाई जो आगें चलकर मरियम जमानी जानी गयी।क्योकि भारमल जी ने दासी पुत्री के नाते अपनें खानदान या अन्य राजपूत से न करके
16 फरवरी1562 को दिल्ली के बादशाह अकबर से कर दी।
(जैसा कि भारमल जी के शुध्द रजपूती खुन पांच पुत्रों में ही है। जिनमें रानी बदन कँवर के दो व सोलंकी रानी के तीन थे।)
भारमल (बिहारीमल ) राजा पृथ्वीराज के पुत्र थे।
हरकु कुवर (हीराबाई) की सच्चाई
-आमेर के राजा भारमल के विवाह में देहज में आयी परसीयन दासी की पुत्री थी।
उसका लालन पालन राजपुतानें में हुआ था।ओर वह राजपूतानें के रीति रिवाज भलिभांति जानती थी।
ओर राजपूतानें में उस हीराकुँवरी,(हरकु:) कहते थे।
यह राजा भारमल की कुटनितिक चालें थी।
राजा भारमल जानतें थे ,की अकबर की सेना जनसंख्या में ज्यादा व तोप बारुद हतियार में आगें थे।
ओर हमारे पास भालें तलवार थी। पर एक राजपूत एक हजार मल्चछों पर भारी पड़ सकता था।
लेकीन यह वह राजा था ,जिसनें सनातन धर्म को बचाऐं रखनें एवं प्रजा की रक्षा के हितों को ध्यान में रखते हुए ऐसा कदम उठाया था।जो मत्री संबध में एक प्रकार से बादशाह को बुध्दी के बल से बवकूफ बनाया।
नोट -आमेर वह स्टेट थी। ज़ो की उपजाऊ भूमि तथा धन धान्य अन्य संम्पदा से परी पुर्ण थी।
चूकिं यह स्टेट राजपूतानें के बिल्कुल मध्य भाग में स्थित है। ओर पडोसी राज्यों तथा विदेशी आक्राताओं के लिए महत्वपूर्ण थी।
ओर अन्य स्टेट पहाडीं इलाकों मरुस्थलिए थी। ओर वहा तक पहुचना इनका मुश्किल था। अपितु
जनमानस को ध्यान में रखतें हुए।
व बिना रक्तपात के उन्होन ऐसा कदम उठाया था।जो की बुध्दि एव चार्तुर का उदारण बना था।
ओर एक परसियन दासी पुत्रीं से हवसी बादशाह को मूर्ख बना कर,उससे उसका विवाह कर दिया।
बादशाह अकबर का सपना था।की सम्पूर्ण हिन्दूस्तान को इस्लाम में परिवर्तित हो जाऐ।
लेकीन आमेर महाराज ने इसका सपना बुद्धि के बल से चार्तुयता से नष्ट कर दिया था।
कच्छवाहा राजवंश ने काबुल से कंधार तक ओर फारस से लेकर हर जगह सनातन परचम लहराया था।
ओर इसी भय के कारण आज अफगानिस्तान में मां अपने बच्चो को सुलानें के लिए बोलती है। बेटा सो जा वर्ना मानसिहं आ जाऐगा। इसी वंश में एक महायोध्दा का नाम मानसिहं था ,
जो भारमल जी के पोते थे।
🌞 🚩🚩🚩जय राजा मानसिहं आमेर🚩🚩🚩🌞
आज भी अफगान में मां अपने पुत्र को सुलाने के लिए कहानी नही राजा मानसिहं का भय दिखाती है।ओर कहती है।बेटा सो जा वर्ना मानसिहं आ जाऐगा।
राजा मानसिंह आमेर व मंदिरों का पंचरंगा ध्वज।
किसी भी राजा या धर्म की ध्वजा उनके वर्चस्व, प्रतिष्ठा, बल और इष्टदेव का प्रतीक होता है। हर राजा, देश या धर्म की अपनी अपनी अलग अलग रंग की ध्वजा (झण्डा) होती है।
सनातन धर्म के मंदिरों में भगवा व पंचरंगा ध्वज लहराते नजर आते है। भगवा रंग सनातन धर्म के साथ वैदिक काल से जुड़ा है
, हिन्दू साधू वैदिक काल से ही भगवा वस्त्र भी धारण करते आये है। लेकिन मुगलकाल में सनातन धर्म के मंदिरों में पंचरंगा ध्वज फहराने का चलन शुरू हुआ।
जैसा कि ऊपर बताया जा चूका है ध्वजा वर्चस्व, प्रतिष्ठा, बल और इष्टदेव का प्रतीक होती है। अपने यही भाव प्रकट करने के लिए आमेर के राजा मानसिंह ने कुंवर पदे ही अपने राज्य के ध्वज जो सफ़ेद रंग का था को पंचरंग ध्वज में डिजाइन कर स्वीकार किया।
राजा मानसिंहजी ने मुगलों से सन्धि के बाद अफगानिस्तान (काबुल) के उन पाँच मुस्लिम राज्यों पर आक्रमण किया, जो भारत पर आक्रमण करने वाले आक्रान्ताओं को शस्त्र प्रदान करते थे, व बदले में भारत से लूटकर ले जाए जाने वाले धन का आधा भाग प्राप्त करते थे।
राजा मानसिंह ने उन्हें तहस-नहस कर वहाँ के तमाम हथियार बनाने के कारखानों को नष्ट कर दिया व श्रेष्ठतम हथियार बनाने वाली मशीनों व कारीगरों को वहाँ से लाकर जयगढ़ (आमेर) में शस्त्र बनाने का कारखाना स्थापित करवाया।
इस कार्यवाही के परिणाम स्वरूप ही यवनों के भारत पर आक्रमण बन्द हुए व बचे-खुचे हिन्दू राज्यों को भारत में अपनी शक्ति एकत्र करने का अवसर प्राप्त हुआ।
राजा मानसिंह ने भारत के हिन्दू राज्यों में साधु संतों का रहने की सुव्यवस्थित किया। हिन्दू राजाओं के लिए घोड़े की दौड़ प्रतियोगिता आयोजित किया जाता था साथ में प्रतियोगिता का परिणाम का फल साधु संतों के द्वारा दी जाती थी। इस प्रकार के आयोजन से राज मानसिंह बहुत प्रसन्न होते थे।
यही नहीं राजा मानसिंह आमेर ने भारतवर्ष में जहाँ वे तैनात रहे वहां वहां उन्होंने मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया व नए नए मंदिर बनवाये।
मंदिरों की व्यवस्था के लिए भूमि प्रदान की. उड़ीसा में पठानो का दमन कर जगन्नाथपुरी को मुसलमानों से मुक्त कर वहाँ के राजा को प्रबन्धक बनाया। हरिद्वार के घाट, हर की पैडियों का भी निर्माण भी मानसिंह ने करवाया।
मानसिंहजी की इस कार्यवाही को तत्कालीन संतों ने पूरी तरह संरक्षण व समर्थन दिया तथा उनकी मृत्यु के बाद हरिद्वार में उनकी स्मृति में हर की पेड़ियों पर उनकी विशाल छतरी बनवाई।
यहाँ तक कि अफगानिस्तान के उन पाँच यवन राज्यों की विजय के चिन्ह स्वरूप जयपुर राज्य के पचरंग ध्वज को धार्मिक चिन्ह के रूप में मान्यता प्रदान की गई व मन्दिरों पर भी पचरंग ध्वज फहराया जाने लगा।
नाथ सम्प्रदाय के लोग "गंगामाई" के भजनों में धर्म रक्षक वीरों के रूप में अन्य राजाओं के साथ राजा मानसिंह का यशोगान आज भी गाते।
आमेर राज्य के सफ़ेद ध्वज की जगह पंचरंग ध्वज के पीछे की कहानी
जब मनोहरदास जो मानसिंह का एक अधिकारी था, उत्तर-पश्चिम सीमान्त प्रदेश के अफगानों से लड़ रहा था। उसने लूट के माल के रूप में उनसे भिन्न-भिन्न पांच रंगों के ध्वज प्राप्त किये थे। ये ध्वज नीले, पीले, लाल, हरे और काले रंग के थे।
मनोहरदास ने कुंवर को सुझाव दिया कि राज्य का ध्वज कई रंगों का होना चाहिये केवल श्वेत रंग का नहीं। इस सुझाव को शीघ्र स्वीकार कर लिया गया। उस समय से जयपुर राज्य का ध्वज पांच रंगों वाला हो गया। ये रंग है नीला, पीला, लाल और काला।
जयपुर के लोग इस कथन की पुष्टि करते है कि राज्य का पंचरंगा झण्डा सबसे पहले कुंवर मानसिंह ने तैयार किया था। उस समय वे काबुल के गवर्नर थे।
इसके अतिरिक्त श्री पट्टाभिराम शास्त्री जो महाराजा संस्कृत कालेज जयपुर के प्रिंसिपल थे ने अपने जयवंश महाकाव्य की भूमिका में इस तथ्य का उल्लेख किया कि जयपुर के पंचरंग ध्वज की कल्पना मानसिंह द्वारा की गई थी।"
रियासती काल में झंडे की वंदना में यह उल्लेखित है:- मान ने पांच महीप हराकर, पचरंगा झंडा लहराकर, यश से चकित किया जग सारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा।
धर्म रक्षक।
🚩 जय राजा मानसिहं आमेर🚩
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