राजपूत इतिहास कछुआ वंश 1

            राजपुताना इतिहास – कछवाहा (कछवाह) 1


क्षत्रिय  वंश का इतिहास

कछवाहा (कछवाह) क्षत्रिय राजपूत वंश का क्रमबद्द इतिहास लिखने से पहले मैं माँ भवानी के चरणों मेँ नमन करता हूँ। कछवाहा (कछवाह) क्षत्रिय राजपूत वंश का इतिहास लिखने के साथ-साथ मै आपको नरवर व उससे भी पहले के इतिहास के बारे में भी में विस्तार से बताने का प्रयास करूँगा। नरवर से इस कछवाहा (कछवाह) वंश के वट वृक्ष कि शाखाएँ प्रफुलित होकर सर्वत्र फैली है। जो कछवाहा (कछवाह) वंश का इतिहास समझने से पहले बहुत जरुरी है। क्योँकि आज कल कुछ अवसरवादी व हल्कि सोच के गैर राजपूत लोग दूसरो का इतिहास चुराकर तोड़मरोड़कर पेश कर रहे हैं। वे लोग उसमे अपने वंशजो के नाम जोङकर राजपूत वंश के हमारे पूर्वजो को अपने पूर्वज बताकर अपनी जाती या खाँप को उच्च एँव महान साबित करने की सोची समझी चाल के तहत हमारा इतिहास मिटाने कि कोशिस कर रहे हैं।

मगर सच तो यह हैकि आज हमारी युवा पीढ़ी जो अक्सर अपना और अपनें पूर्वज वंसजों का जातिगत इतिहास केवल बाज़ारू किताबों और इन्टरनेट पर दी गयी जानकारी की सहायता से कुछ ही जानकारियां ढूंढकर, उन्हें पढ़कर पूर्णरूप से संतुष्ट नहीं हो सकती! जिसका मुख्य कारण यह है कि आधी अधूरी जानकारी का होना या फिर तथ्यों को तोड़मरोड़कर गलत और मनगढ़त बातें लिखी हुयी मिलाना,यह बात सभी जानतें हैं की एक जाती से दूसरी जाती और उससे फिर एक नयी जाती इस प्रकार लगभग सभी जातियां क्षेत्रीय वंस से ही निकली हुई है।

मगर उन अवसरवादी व हल्कि सोच से हमें कोई बराबरी नहीं करनी क्योकिं हमारी सम्पूर्ण राजपूत जाती का इतिहास क्रमागत और पीढ़ीगत है, जिसमे अन्य जातियों का भी इतिहास भी समाया हुवा है, जो हमारे पूर्वजों द्धारा अपने खून से लिखित, अपने शोर्ये और बलिदान से सिंचित है, इसलिए हमारा इतिहास अमिट है और आज भी प्रफुलित है। हमें दूसरों के लिखित मिथ्या कल्पनाकोश पर ध्यान न देकर सिर्फ अपने इतिहास के बिखरे मोतियों को पुनःएक धागे में पिरोकर (जोड़कर) फिर एक माला का निर्माण करना है।
*जय माँ भवानी*
[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास
गाँवपोस्ट - तोगावास, तहसील – तारानगर,
जिला - चुरू, (राजस्थान)

      हमें कछवाहा (कछवाह) क्षत्रिय राजपूत राजवंश के प्राचीन इतिहास को अच्छी तरह से समझने के लिए इतिहास की गहराई में जाना होगा, जिसमें मुख्यतःइतिहास को हम सुविधा के लिये चार खण्डों में बांटकर कर अध्यन करेंगे।
     01 - ब्रह्मा, विष्णु, महेश (शिव) से लेकर, ब्रह्मा जी 59 पुत्रों का इतिहास।
     02 - ब्रह्माजी से लेकर भगवान श्री राम तक का इतिहास।
     03 - भगवान श्री राम से लेकर, दुल्हराय तक का इतिहास।
     04 - राजस्थान में कछवाहा वंश का इतिहास
1 - ब्रह्मा, विष्णु, महेश (शिव) से लेकर, ब्रह्मा जी 59 पुत्रों का इतिहास -:

दो शब्द - हमें सबसे पहले मानव और उस मानव का अनेक जातियों में कैसे विभाजन हुवा इसका पूरा ज्ञान प्राप्त करने के लिए त्रिमूर्ति अर्थात ब्रह्मा, विष्णु, महेश (शिव) से लेकर मानव जाती की उत्पति का भी ज्ञान प्राप्त करना होगा ताकि जिससे की इतिहास को समझनें में आसानी रहेगी ।
क्योकिं ब्रह्मा की संतानों से ही मानव जाती का विकास हुवा है, जिसमें सूर्यवंश का निकास ब्रह्मा के सत्रह मानस पुत्र पुत्रों में से सातवें पुत्र वैवस्वत मनु से हुवा है। सूर्यवंश वंश राजा इक्ष्वाकु से शु्रू हुआ। भागवत के अनुसार सूर्यवंश के आदिपुरुष इक्ष्वाकु थे। इसीलिए सूर्य वंश को इक्ष्वाकु वंश भी कहा जाता है। मनु ने ही अयोध्या को बसाया था। इससे पहले कश्यप थे। कश्यप के पुत्र सूर्य और सूर्य के पुत्र के पुत्र वैवश्वत मनु हुए। इन्हीं वैवश्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु थे। यानि वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु और उसके तीन पुत्रों विकुक्षि, निमि और दण्डक से सूर्यवंश आगे बढ़ा जिसमें अनेक महान राजपुरुषों का जन्म हुवा और समय कल में उन राजपुरुषों के वंसजों से अनेक जातियों का क्रमबद विकास हुवा जिसमें सूर्यवंश के अंतर्गत मुख्य रूप से सूर्य वंश की दस शाखायें चली -: 
     01 - राजपूत - सूर्य वंश - कछवाह
     02 - राजपूत - सूर्य वंश - राठौर (राठौड़)
     03 - राजपूत - सूर्य वंश - बडगूजर (राघव)
     04 - राजपूत - सूर्य वंश - सिकरवार
     05 - राजपूत - सूर्य वंश - सिसोदिया
     06 - राजपूत - सूर्य वंश - गहलोत
     07 - राजपूत - सूर्य वंश - गौर (गौड,गौड़)
     08 - राजपूत - सूर्य वंश - गहलबार (गेहरवार)
     09 - राजपूत - सूर्य वंश - रेकबार (रैकवार)
     10 - राजपूत - सूर्य वंश – जुनने
इन दस मुख्य शाखाओं के बाद अनेक उप शाखाएं भी हुई जो आज इस रूप में देख सकतें हैं जैसे-:

सूर्यवंश का वंश वृक्ष
सूर्यवंश की शाखाएँ एवं उपशाखाएँ (सूर्यवंश का वंश वृक्ष)
01 गहलौत क्षत्रिय
23 पहाड़ी सूर्यवंशी क्षत्रिय
45 बम्बवार क्षत्रिय
02 कछवाहा क्षत्रिय
24 सिंधेल क्षत्रिय
46 चोलवंशी क्षत्रिय
03 राठौर (राठौड़)
25 लोहथम्भ क्षत्रिय
47 पुंडीर क्षत्रिय
04 निकुम्म क्षत्रिय
26 धाकर क्षत्रिय
48 कुलूवास क्षत्रिय
05 श्री नेत क्षत्रिय
27 उदमियता क्षत्रिय
49 किनवार क्षत्रिय
06 नागवंशी क्षत्रिय
28 काकतीय क्षत्रिय
50 कंडवार क्षत्रिय
07 बैस क्षत्रिय
29 सूरवार क्षत्रिय
51 रावत क्षत्रिय
08 विसेन क्षत्रिय
30 नेवतनी क्षत्रिय
52 नन्दबक क्षत्रिय
09 गौतम क्षत्रिय
31 मौर्य क्षत्रिय
53 निशान क्षत्रिय
10 बडगूजर क्षत्रिय
32 शुंग वंशी क्षत्रिय
54 जायस क्षत्रिय
11 गौड क्षत्रिय
33 कटहरिया क्षत्रिय
55 चंदौसिया क्षत्रिय
12 नरौनी क्षत्रिय
34 अमेठिया क्षत्रिय
56 मौनस क्षत्रिय
13 रैकवार क्षत्रिय
35 कछलियां क्षत्रिय
57 दोनवार क्षत्रिय
14 सिकरवार क्षत्रिय
36 कुशभवनियां क्षत्रिय
58 निमुडी क्षत्रिय
15 दुर्गवंश क्षत्रिय
37 मडियार क्षत्रिय
59 झोतियाना क्षत्रिय
16 दीक्षित क्षत्रिय
38 कैलवाड क्षत्रिय
60 ठकुराई क्षत्रिय
17 कानन क्षत्रिय
39 अन्टैया क्षत्रिय
61 मराठा या भोंसला क्षत्रिय
18 गोहिल क्षत्रिय
40 भतिहाल क्षत्रिय
62 परमार क्षत्रिय
19 निमी वंशीय क्षत्रिय
41 महथान क्षत्रिय
63 चौहान क्षत्रिय
20 लिच्छवी क्षत्रिय
42 चमिपाल क्षत्रिय

21 गर्गवंशी क्षत्रिय
43 सिहोगिया क्षत्रिय

22 दघुवंशी क्षत्रिय
44 बमटेला क्षत्रिय

सूर्यवंश की शाखाएँ एवं उपशाखाएँ (सूर्यवंश का वंश वृक्ष)
1. सूर्यवंशी 2. निमि वंश 3.निकुम्भ वंश 4. नाग वंश 5. गोहिल वंश, 6. गहलोत वंश 7. राठौड वंश 8. गौतम वंश 9. मौर्य वंश 10. परमार वंश, 11. चावड़ा वंश 12. डोड वंश 13. कुशवाहा वंश 14. परिहार वंश 15. बड़गूजर वंश, 16. सिकरवार 17. गौड़ वंश 18. चैहान वंश 19. बैस वंश 20. दाहिमा वंश, 21. दाहिया वंश 22. दीक्षित वंश।
परमेश्वर वह सर्वोच्च परालौकिक शक्ति है जिसे इस संसार का स्रष्टा और शासक माना जाता है। हिन्दी में परमेश्वर को भगवान, परमात्मा या परमेश्वर भी कहते हैं। अधिकतर धर्मों में परमेश्वर की परिकल्पना ब्रह्माण्ड की संरचना से जुडी हुई है। परमेश्वर के तीन (त्रिमूर्ति) मुख्य रूप हैं।
01 - ब्रह्मा
02 – विष्णु
03 - शिव
पुराणों में त्रिमूर्ति के भगवान विष्णु को विश्व का पालनहार कहा गया है। त्रिमूर्ति के अन्य दो भगवान शिव और ब्रह्मा को माना जाता है। जहाँ ब्रह्मा को विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है वहीं शिव को संहारक माना गया है।
विष्णु - विष्णु की पत्नी लक्ष्मी हैं। विष्णु का निवास क्षीर सागर है। उनका शयन सांप के ऊपर है। उनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है जिसमें ब्रह्मा जी स्थित है।
शिव - शिव को देवों के देव कहते हैं, इन्हें महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है | हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धाङ्गिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है।
शिव के पुत्र कार्तिकेय और गणेश दो हैं तथा पुत्री अशोक सुंदरी हैं। शिव अधिक्तर चित्रों में योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। अशोक सुंदरी का विवाह नहूष से हुआ था। तथा अशोक सुंदरी ययाति जैसे वीर पुत्र तथा सौ रूपवती कन्याओं की माता बनीं। इंद्र के अभाव में नहूष को ही आस्थायी रूप से इंद्र बनाया गया, उसके घमंड के कारण उसे श्राप मिला तथा इसीसे उसका पतन हुआ। बादमें इंद्र नें अपनी गद्दी पुन: ग्रहण की।

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